भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अयोध्या-5 / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाना के लिए अयोध्या थी अजुध्या जी
बुआ के लिए भी अयोध्या अजुध्या जी
और तो और, जूते गाँठते शरीफ़ुद्दीन के लिए भी अजुध्या जी

पिता लला को हाथ लगा कहते थे अजुध्या जी
आस्था के अछोर लोक में विचरते
इन सभी जनों के लिए
भला कहाँ मुमकिन था-
कि बिना ’जी’ के लें रामजी की नगरी का नाम

जो पढ़े-लिखे नहीं हैं
और जिनके पास नहीं कोई सनद
मग़र जो पेश आते हैं चीज़ों से तमीज से
उनके लिए अयोध्या अयोध्या नहीं,
आज भी अयोध्या
अजुध्या जी ।