अयोध्या अयोध्या थी
वह थी क्योंकि वहाँ एक नदी बहती थी 
वह थी क्योंकि वहाँ लोग रहते थे
वह थी क्योंकि वहाँ सड़कें और गलियाँ थीं
वह थी क्योंकि वहाँ मंदिर में बजती घंटियाँ थीं
और मस्जिद से उठती अजान थी  
अयोध्या अयोध्या थी
रामचन्द्र  जी के जन्म  से पहले भी वह थी 
रामचन्द्र  जी हमीद मियाँ की बनाई खड़ाऊँ पहने
करते थे परिक्रमा  अयोध्या की 
सो जाती थी जब अयोध्या रात में
सोई हुई अयोध्या को चुपचाप देखते थे   रामचन्द्रजी
बचपन की स्मृतियाँ ढूँढ़ते कभी ख़ुश कभी उदास
हो जाया करते थे रामचन्द्र  जी  
अयोध्या अब भी  अयोध्या है
अपनी  क्षत-विक्षत   देह के साथ
अयोध्या अब भी  अयोध्या है
पूर्वजों के सामूहिक विलाप के साथ   
हमीद मियाँ चले गए हैं देखते मुड़-मुड़कर 
जला घर
चले गए हैं रामचन्द्र  जी भी मलबे की मिट्टी 
खूँट में उड़स 
                        
रचनाकाल : 1993