अरक्षितों का गीत / बैर्तोल्त ब्रेष्त / राजेश चन्द्र
‘द गुड वूमैन ऑफ़ सेज़ुआन‘ नाटक से यह कविता
हमारे मुल्क़ में
एक क़ाबिल आदमी
मुहताज़ होता है क़िस्मत का
जब तक मिल न जाए उसे
कोई मज़बूत सरपरस्त
मुश्क़िल ही है कि साबित कर पाये वह
क़ाबिलियत ख़ुद की ।
किसी भले आदमी के लिए बचा पाना ख़ुद को
नामुमकिन ही है
और तो और ईश्वर ख़ुद भी
निस्सहाय ही रहते हैं यहाँ ।
आह, आखि़र क्यों नहीं हैं ईश्वर के पास
आत्मरक्षा के ख़ुद के साज़ो-सामान
और हैं तो क्यों नहीं तैनात करते उन्हें वे
बुराई के ख़िलाफ़ अपनी मुहिम में
अच्छाई की ताज़पोशी और
दंगों की रोकथाम के लिए
और इस दुनिया में अमन के हालात लाने के लिए ?
आह, आखि़र क्यों नहीं करते ईश्वर
काम ख़रीद और बिक्री के ?
क्यों रोक नहीं लगाते नाइंसाफ़ी पर ?
क्यों नाश नहीं कर देते वे भुखमरी का ?
क्यों नहीं दे देते रोटी हरेक शहर को ?
और ख़ुशहाली हरेक घर के लिए ?
आह, आखि़र क्यों नहीं करते ईश्वर
काम ख़रीद और बिक्री के?
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र