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अरज / बबली गुज्जर

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मैं ज्यादा धार्मिक नहीं रहा था कभी
पर मेरी नास्तिकता ने नहीं खड़ा किया
तुम्हारे भरोसे पर किसी प्रकार का कोई प्रश्नचिह्न

तुम्हारे साथ खातिर मैं
कितने मंदिरों की सीढ़ियाँ चढा
मैंने कभी उनकी गिनती नहीं की

बस तुम्हारा भरोसा बनाए रखे ईश्वर
उनसे बस एक विनती यही रही

शहर के हर छोटे- से- छोटे मंदिर के प्रांगण में
जब तुम मेरे पास बैठी रहीं थी चुपचाप
मैंने तब मन ही मन ले ली थी एक कसम

तुम्हें कभी नहीं खोने दूँगा...

एक दिन उसी श्रद्धा के चलते
तुमने मेरे बटुए के कोने में
रख दी थी एक पर्ची
खोलना मत इसे कभी
है इसमें एक गुप्त अर्जी

अब जब तुम नहीं हो,

पंद्रह साल बहुत होते हैं लहर
मैंने बदल लिये हैं दो-दो घर

लेकिन वह पर्ची आज भी वहीं छुपी हुई है
उसके बोझ तले मेरी जेब आज भी दबी हुई है

तुम्हारा दुख मेरे लिए अब भी अबोला है
मैंने आज भी डर से उस पर्ची को नहीं खोला है

वह बन्द पर्ची मेरी आखिरी उम्मीद है
एक दिन ईश्वर हमारी सुनेगा
और तुम लौट आओगी

कब पूरी होगी वह अरज बोलो
तुमने उसमें कौन- सी इच्छा लिख मूँद दी थी
जिसके पूरे होने के इंतज़ार ने
खत्म कर दी है मेरी पूरी की पूरी ज़िंदगी ही