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अरसे बाद दराज़ खोला / मनविंदर भिम्बर
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अरसे बाद दराज़ खोला
कुछ धूल खाती चीज़ें मिली
टटोला तो कुछ मुड़े काग़ज़ भी मिले
जिन पर पहले कुछ लिखा था
फिर उस पर लकीरें फेरी थीं
आँखों में वे अक्षर तैर आए
जिन पर लकीरें फेरी गई थीं
वे अक्षर
खास अक्षर थे
आग को चूमना चाहते थे
ज़हर को पीना चाहते थे
उन्होंने
आग को चूमा
ज़हर को पिया
फिर
दराज़ में कहीं दब कर रह गए
धूल खाने के लिए
वक़्त के साथ
अक्षर गहरे हुए या फीके पड़ गए
ये वक़्त जाने