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अरसे से / अशोक कुमार
Kavita Kosh से
गेहूँ के दाने
सालों से कहाँ देखा
आटे छोड़ कर
धान कहाँ देखा
चावल बदल-बदल कर
ज्वार-बाजरे में
फर्क भी कहाँ पता
सिर्फ इसके कि
वे कोई युग्म पद हैं
बैल कहाँ देखे
खेत में
किसान कहाँ देखा
अरसे से
सिवा इसके कि
कोई बुरी ख़बर थी उनकी
टी वी पर!