अरिकोंछक स्वाद / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
बरखी छलन्हि ओहि दिन
हमरा बाबी केर
ककरा नोंत दिअऊ
ताही लै उठलइ बहुतो काल घोंघाउजि
होइत घमर्थनि
ऊठि गेलैक पहर भरि बेर
बरखी छलन्हि ओहि दिन हमरा बाबी केर
बाबा, गामक सब सँ बूढ़
बूढ़े टा नहिं
छथि प्रतिष्ठितो
बाजथि गप्प गूढ़ सँ गूढ़
एकरा घा मे
ओकरा घर मे
लगबै, बभवै, लै
नमराबथि रहि रहि सूँढ़
नीक लगइ छन्हि बैसल बैसल
रहौ लड़ैत गामकेर लोक,
जौं क्यौ दइ छन्हि हुनका टोक
तँऽ चुट्टा लगबइ छथि बाबू!
चूसि लैत छटि सबटा सोनित
जहिना धन्हा पोखरिक जोंक।
बिनु बाबा केँ नोतने,
अनका नोंति सकइ छथि के बुड़िलेल
तनिका सङे लगाय झमेल
भुस्सा थड़ि बइसैवा मे ओ
राखथि अप्पन पहिला हाथ
जे नोतथि पहिने बाबाकेँ
तनिका बाबा करथि सनाथ।
पड़त नोंत बाबा केँ
बाबा लेलन्हि फराटी दहिना हाथेँ
टपला सौंसे चऽर
टेकिते टेकिते।
हिंसखे छन्हि सब दिन बाबाकेँ
नोंतक दिन मे दैत छथिन्ह ओ
नमहर बेस लड़ुब्बा ठोप
ठढ़का पर सँ,
तखन वैदनाथी पासाकेर
उज्जर दप्दप् बेस त्रिपुण्ड
नोंत खाय, भै जाथि भुसुण्ड!
एतवा धरि छन्हि
खेनिहारो छथि
ऐल पात पर वस्तु आइधरि
बाबा कहिओ कैल न व्यर्य
भोज भात मे बहुतो ठाँ
सहजहिं बाबा करथि अनर्थ,
भरल जवानी मे
सठबैत छलाह पसेरी भरि धरि गूड़
पन्द्रह सोड़ह रोहुक मूड़
छागर सौंसे पनपिआइ मे
दही विचच्छन बस, दू छाँछ
सात सेर धरि तरले माँछ।
छलनि गम्हरिआ पिड़ही राखल
माँजि मूँजि लोटा भरि पानि
धो कै पैर
बैसि पिड़ही पर
बावा एकदम देहथिन तानि
छत्तिस टा तिल कोड़ा खैलनि
कूड़ कुड़ बऽड़ एगारह गोट
ऐल पात पर भात सठा कै
देलथिन पानि तखन दू घोंट
बड़ी सात डब्बुक टा खैलनि
छलइ अधिक मेरिचाइक योग
माँझ पेट भरिऐलनि तावत
बाँकी केवल रहलनि दोग
कड़ छलइ तेँ-
दूनू पड़ा भरि भरि ऐलनि पानि
जावत बाबा नाक झाड़लनि
बामा हाथेँ पोछलनि मोंछ
तावत आबि गेलनि अरिकोंछ
नोर आँखि मे भरि भरि ऐलनि
कहै लगलथिन बात सम्हारि
आइ फेर ओ मोन पड़ल अछि
कते’ दिनुक बिसरलहा बात
वाबी तोहर जीविते छलथुन
काजक रहै बतीसो दाँत
हुनका हाथक रान्हल बाटल
सन भेटल नहिं तकराबाद
मुइलथुन जहिए तोहर बाबी
ऊठि गेल हमरा लेखेँ
अरिकोंछक स्वाद।