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अरूप नायिका / निधि अग्रवाल

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कभी वह तुम में चाँद देखेगा,
कभी तुमको चाँद में।
लेकिन तुम याद रखना
वह कवि है,
कल्पना के विस्तृत निजी
आकाश का स्वामी!
कई चाँद उसकी तूलिका
से जन्मते- मिटते हैं।
और उसका 'तुम'
निर्विकार रूप से
बस उसके अंतस में
विचरता है।
और तुम केवल एक 'आम तुम' हो
कभी कुछ कमज़ोर क्षणों में
उसके शब्दों में ख़ुद को खोज
'मैं' की आहुति देती।
कभी आत्ममुग्धता में
बन उसकी नायिका
जीवन भर की व्यथा
अकारण ढोती।