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अरे! / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध

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जुलाई तक मकान बन जाएगा
मेरी नज़रों में सितम्बर अक्टूबर
का मैं हूँ

निचली मंज़िल के नये मकान में
खिड़की से देख रहा हूँ
ऊपरी मंज़िल वाले इस मकान
में जून के मैं को

पंखा गर्म हवा के थपेड़े मार रहा है
खिड़की बन्द हो या खुली
हवा की आवाज़ नहीं बदलेगी
गन्दी झाड़ियो के पार
तपती ईंटों की दीवारें समवेत गाती रहेंगी
जून का मैं थोड़ी देर आराम करना चाहता हूँ
जग का पानी उत्तेजित अणुओं का धर्म जताता है
सितम्बर अक्टूबर की मेरी प्यास
पानी के अणुओं को अपनाती है
स्नायु के झंकार जून के मैं के ख़यालों में
गुनगुनाते हैं
तपती धूप में काम कर रहे ओ आधे दर्जन हाथ!
गर्म ईंट उठा रहे हाथ
मेरी सितम्बर अक्टूबर की ज़िन्दगी के लिए तुम्हें धन्यवाद।
क्या सचमुच ये मज़दूर देखते नहीं
मुझे दिखता है बन्द खिड़की से
घुँघराले बालों वाला बच्चा
लू से खेल रहा है

खुली खिड़की से मेरी आवाज़ दौड़ती है
सुनो
अरे! बच्चे को धूप से हटा लो।