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अरे काश्वी / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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अरे काश्वी
तुम चुप बैठीं क्या हो सोच रहीं

देखा तुमने -
धूप पेड़ पर ऊँघ रही है
इधर गिलहरी
नये फूल को सूँघ रही है

घास हँस रही -
तुमने है क्या देखा उसे नहीं

टेर रहा है
पीपल पर बैठा सगुनापाखी
बोल तुम्हारे ही देंगे
उसके सुख की साखी

उधर झील पर
हवा बह रही - लहरें संग बहीं

छोड़ सोचना, हँसो काश्वी -
धूप झरेगी फिर
तुलसीचौरे पर
पूजा की जोत धरेगी चिर

जहाँ अँधेरा
रखो काश्वी, अपनी हँसी वहीं