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अरे बाबाजी के बाग मे, बेली फूल चमेलिया / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

झमकती हुई दुलहिन को जाते देखकर दुलहे ने बाग में उसकी बाँह पकड़ ली। दुलहिन ने शंख की चूड़ी फूट जाने का भय दिखला कर बाँह छोड़ देने का अनुरोध किया। दुलहे ने उत्तर दिया कि इन्हें फूटने दो। मैं इसके बदले में सोने का कंगन गढ़वा दूँगा। दुलहिन उस कंगन को पहनने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन दुलहा कहता है- ‘मैं जबर्दस्ती हाथ पकड़कर तुम्हें कंगन पहना दूँगा।’ इस गीत में दुलहे के उत्तर में अहंकार तथा दुलहिन के उत्तर में स्त्री जन्य मान प्रकट होता है।

अरे बाबाजी के बाग में, बेली फूल चमेलिया।
तहि तर कवन बाबू, खेलै जुआ सरिया॥1॥
अरे अमकैते<ref>‘झमकैते’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref>झमकैते<ref>झमकते हुए</ref>, राजाजी के बेटिया।
झपटि धैल हे छैला, दाहिनहिं बँहियाँ॥2॥
अरे छोडू़ छोडू़ अहे छैला, दहिन मोरी बँहियाँ।
फूटि जैतै संखा चूड़ी, टूटी जैतै कँगनमा॥3॥
फूटै देहो टूटै देहो गे लाढ़ो, सोना के रे कँगनमा।
फेरु<ref>फिर</ref> के गढ़ैबै गे लाढ़ो, सोना के रे कँगनमा॥4॥
जौं<ref>अगर</ref> हमें होयबै हे छैला, राजाजी के हे बेटिया।
हाथहूँ न छूबै<ref>छूऊँगी; स्पर्श करूँगी</ref> हे छैला, सोना के रे कँगनमा॥5॥
जौं हमें होयबै गे लाढ़ो, राजाजी के हे बेटबा।
हाथ धै पहिरैबौ गे लाढ़ो, सोना के रे कँगनमा॥6॥

शब्दार्थ
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