अरे भ्रात मतना छेड़िये, अबला बीर की जात रे ।
द्यूँ ज्ञान की शिक्षा तनै, टुक ठहरज्या घड़ी स्यात रे ॥टेक॥
करने गुज़ारा आ रही, मेरे रूसगे रघुनाथ रे ।
तू नृप हम रैयत तेरी, मतना लगाइये हाथ रे ।1।
तेरै राज का अभिमान है, कहता कुफ्र की बात रे ।
गन्धर्व पति मेरे पाँच हैं, रक्षा करैं दिन रात रे ।2।
सुण दमयन्ती नैं नीच का, भाई भष्म कर दिया गात रे ।
भिरगु ऋषि की इस्त्री, ले ज्या था दान्ना साथ रे ।3.।
वो नहूष गेर्या सुर्ग से, करने लग्या उत्पात रे ।
कहैं निहालचन्द रावण मर्या, तेरी तो क्या औक़ात रे ।4।