अरे मन! भज नव नन्दकुमार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
(राग केदारा-तीन ताल)
अरे मन! भज नव नन्दकुमार।
आत्मारामगणाकर्षी हरि कोटि-मदन-मद-मार॥
नित्य नवीन सच्चिदानँद-सान्द्रांग ललित-लावण्य।
असमानोर्ध्व-रूपसुषमा-विस्मापित-जड-चैतन्य ॥
अतुल-मधुरतम-प्रेम-समन्वित-प्रियमण्डल भगवान।
त्रिभुवन-मन-आकर्षक-मुरली-कल-कुंजित श्रीमान॥
चमत्कारमय-सर्वाद्भुत-लीला-कल्लोल-समुद्र।
अवतारावलि-बीज, नमस्कृत-देवराज-विधि-रुद्र॥
प्रेमानन्द-सुधा-रस-वारिधि प्रेमीजन-मन-प्राण।
नित्य प्रेम-रस-आस्वादन-रत रसमय, परम सुजान॥
सर्व-सुहृद, निज-भक्त-भक्तियुत, लीलामय रसराज।
रसिकशिरोमणि, मणिगणभूषित-विग्रह श्रीव्रजराज॥
गोपी-मण्डल-मण्डित, राधाराधन, राधा-कान्त।
रासोल्लास-कलानिधि, रासक्रीडारत सुश्रान्त॥
कोमलहृदय असीम, नित्य करुणामय, दयानिधान।
अन्याश्रय सब त्याग, निरन्तर भज हरि, मन धीमान॥