भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अरे मन! भज नित नन्दकिशोर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग विहाग-तीन ताल)

अरे मन! भज नित नन्दकिशोर।
ललित त्रिभन्ग मनोहर छविमय ऋषि-मुनि-मानस-चोर॥
 
अतुलित परम प्रेम-रस-निधि, नित नव माधुर्य-निधान।
अति उदार सौन्दर्य-सुधार्णव सच्चित्‌‌-सुखकी खान॥
सहज विरक्त ज्ञानि-मुनि-मन आकर्षक अँग-प्रत्यंग।
उदित रूप-रवि जहाँ, वहाँ मर चुका तमिस्र अनंग॥
भोग-रोग कर त्याग, सदा जो दुःखद और अनित्य।
श्याम-रूप-वर-सुधा-तरंगिणिमें कर मज्जन नित्य॥