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अरे यार अब तो झांसे से बाहर आओगे / डी. एम. मिश्र
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अरे यार अब तो झांसे से बाहर आओगे?
कहां गये वो अच्छे दिनॽ अब पढ़ा न पाओगे
भक्त बने जो आगे पीछे घूम रहे हैं आज
करो यक़ीन उन्हीं से इक दिन धोखा खाओगे
तुम्हें ग़लतफ़हमी है, पैसे वाले किसके यार?
मगर ग़रीब हुआ खुश तो फिर दिल्ली जाओगे
अभी तुम्हारे सजने और संवरने के दिन हैं
कभी आइने से नज़रें भी मिला न पाओगे
बहुत कर लिया झूठ की खेती तुमने मेरे यार
समय हाथ से निकल गया तो कल पछताओगे
निरा किसान समझते हो जो सबका पालनहार
कटे जो उसके हाथ तो सब भूखे मर जाओगे