भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अरे सुनो तो / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
अरे सुनो तो
इस लड़की ने
नया-नया आकाश छुआ है
देखो,
दमक रहा सूरज
इसकी आँखों में
इंद्रधनुष की पगडंडी
इसकी साँसों में
अभी उगा
इसके सीने में
फागुन का पहला अँखुआ है
देह-राग की इसने सुनी
अभी वंशी-धुन
दुआ -
न व्यापें इसे
कोई भी जग के अवगुन
गली-मोहल्ले के
हर बच्चे की
यह लड़की सगी बुआ है
इसके माथे
कल सुहाग का टीका होगा
दुक्ख न भोगे
जो इसकी मां ने है भोग
वैसे अबका वक्त
साधुओ
काफी कुछ तीता-कडुआ है