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अर्थ मेरा क्या? / राजेन्द्र प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
तनिक रुक जाओ,
समझ् लूँ—
अर्थ मेरा क्या?
कुछ कबीरी बंदगी में,
ग़ज़ल-ठुमरी में,
फर्श-नावों पर लहरती
मस्त झिंझरी में
सुलगते एकांत छन से
देह दुहरी में
---तनिक रम जाओ,
समझ लूँ—
अर्थ मेरा क्या?
बन्द, नीली खिड़कियों से,
अगम गलियों से,
चित्र में भी तड़फड़ाती’’’’’
दो मछलियों से,
झील में डूबी हुई- सी
थिर पुतलियों से
---तनिक जुड़ जाओ,
समझ लूँ—
अर्थ मेरा क्या?
भटकते बहुरूपिये को,
थमे मौसम को,
रोज अनखाती किरण से
तुनुक शबनम को,
समय के अनगिन तटों से
बंटे संगम को
---तनिक अपनाओ,
समझ लूँ
अर्थ मेरा क्या?