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अर्धसत्य-2 / दिलीप चित्रे
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रक्त में फूटती है कोंपल
तभी शुरुआत होती है पतझर की
कोई भी पेड़
अलग नहीं होता जंगल से
और दो पेड़ों के बीच
जो है वही कहलाता है जंगल
गवाह था मैं
तुम सब लोगों के पापों का
और मैं ही था
तुम्हारे पापों का साझीदार
तुम्हारे तमाम अपराहों का
फ़रियादी भी मैं था
और मैं ही था न्यायाधीश
अब कर दो खड़ा मुझे
कटघरे में
भुगतने दो
अपना अलगाव
रक्त में फूट रही है कोंपल
और हो गई है शुरूआत पतझर की।
अनुवाद : चन्द्रकांत देवताले