भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अर्धस्वप्न / जॉर्ज हेइम
Kavita Kosh से
|
अंधेरा सरसरा है
किसी कपड़े की तरह
हिलोर ले रहे हैं पेड़ आसमान के छोर पर
छुप जाओ इस रात
धँस जाओ अंधेरे में
जैसे धँस गए हों मधुमक्खी के छत्ते में
नन्हें बालक बन जाओ
और चुपके से झाँक कर देखो
अपने कम्बल के नीचे से
पुल के रास्ते
कोई आ रहा है हमारी तरफ़
टापों की ऊबड़-खाबड़ आवाज़
गूँज रही है वहाँ
तारे भी भय से पीले पड़ गए हैं
और चांद है
कि घूम रहा है वहाँ
ऊपर आकाश में
किसी बूढ़े की तरह
अपना कूबड़ निकाले
मूल जर्मन से रूसी में अनुवाद : मिख़ाइल गस्पारव
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय