भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अर्पण / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
क्या कुछ तुमको कर दूँ अर्पण
कि मेरा पूरा हो समर्पण।।
तेरे उर से कभी न जाऊँ
हर जीवन में तुझको पाऊँ।।
तेरे होंठों का गीत बनूँ ।
मैं साँसों का संगीत बनूँ ।.
मुझको पथ में छोड़ न जाना।
मुझसे तुम मुख मोड़ न जाना।.
तुम बिन ये दुनिया जंगल है।
तेरे बिन जीवन मरुथल है।.
प्रेम सिंधु दो बूँद पिला दो।
प्राण कण्ठ में मुझे जिला दो।.
जन्म दूसरा जब पाऊँगा।
पास तुम्हारे ही आऊँगा।.
मुस्कानों से माँग भरूँगा।
तेरे पथ में दीप धरूँगा।.
तेरी सारी पीर हरूँगा।
तेरे हित सब काज करूँगा।.
बस इतना ही रब से माँगूँ ।
तेरी खातिर सोऊँ जागूँ।.
-0-