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अलंकार / संजीब कुमार बैश्य / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
जीवनरहित पड़े हुए हैं शरीर
सीमाओं पर
और उनसे दूर यहाँ-वहाँ
क्या यही है
आनन्द और शोक
दुनिया के आलंकारिक नियम?
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब अँग्रेज़ी में मूल कविता पढ़िए
Rhetoric
Bodies, lying lifeless
On borders, and beyond
Are counted
To rejoice, or mourn
And rhetoric rules the world.
–Sanjib Kumar Baishya