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अलख ऐसी जगाओ तुम / प्रेमलता त्रिपाठी

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अधर प्यासे रहें चातक, अलख ऐसी जगाओ तुम ।
जलद बनकर धरा की फिर,तृषा जग की बुझाओ तुम ।

निठुर दीपक नहीं बनना,शलभ की प्रीति होना है,
विकल होना मुझे आता,नहीं अब आजमाओ तुम ।

विहँसती चाँदनी जैसी,मधुर मुस्कान लगती है,
नयन हँसते हुए जागृत, विधाता राग गाओ तुम।

किरण हो भोर सी पावन,सुखद अहसास देना है,
करें सब आचमन जिसका,पवन खुशबू बहाओ तुम।

मधुप की प्रीति मधुशाला,महकता ही रहे आँगन,
सजेंगें प्रेम से तन मन,मनुजता से सजाओ तुम ।