भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अलख जगावै आखर / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अलख जगावै आखर
साच सुणावै आखर

रूसै कदै मन-मीत
नूंत बुलावै आखर

ऐ मुळकै-बतळावै
पीड़ मिटावै आखर

हेत सूं मन बधावै
आंख दिखावै आखर

इण जग आगै मन री
साख जमावै आखर