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अलख / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
कोनी
उतरै
आंथूण रो
जड़वाद
अगूण रै गळै,
मानै
मिनख नै
वानरां री
औलाद,
फिरै
सोधतो जमींदोट कंकालां में
अणाद री आद ?
कोनी धरती
सिस्टी रो
अन्त,
बिना जाण्यां
अनन्त
कोरी कलपना
थरपणा,
चावै
अणभूत्यो
सत
खोल तिसरी आंख
हुसी परतख
अलख !