भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अलग-अलग ईश्वर नहीं होते / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
अलग-अलग धर्म होते हैं
अलग-अलग ईश्वर नहीं होते,
विरासतों में मिलता है,
हमें हिस्से का धर्म
सियासतों के कोई,
ईश्वर नहीं होते।
वक़्त के किसी बड़े हादसे से
अगर कहीं ईश्वर भी अलग-अलग होते,
तो क्या वे इतिहास के हर रास्ते पे
तलवारें, बम, भाले
और बन्दूकें लिए खड़े होते?
क्या उनके हाथ
एक दूसरे के गर्म लहू से सने होते?
क्या हमने इतना घटा दिया ईश्वर का कद
कि बड़े-बड़े धर्म
ईश्वर से भी बड़े हो गये?
आदमी और आदमी के
दरमियाँ गहरी होती गयीं खाइयाँ
बीच में कितने धर्म
इकट्ठे होकर खड़े हो गये
हमें सभी धर्मों से आज ही
इसका उत्तर चाहिए,
हमें अनेकों नहीं केवल
एक ईश्वर चाहिए।