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अलग हुए हम ... / अपअललोन ग्रिगोरिइफ़ / वरयाम सिंह

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अलग हुए हम एक-दूसरे से –
मालूम नहीं – कहाँ और कब फिर से मिल पाएँगे,
यह ज्ञात है केवल ईश्वर को,
कुछ नया जानने की अब आदत नहीं,
सपने देखना अब सेहत के लिए ठीक नहीं ...

जानना और न जानना – दोनों एक ही नहीं था क्या ?
निष्ठुर है भविष्य, हम अलग हुए बहुत पहले ...
यह जानते हुए कि मैं जानता हूँ बहुत ज़्यादा ...
विश्वास करो, ज्ञान एक मुसीबत है –

होकर ही रहता है एक दिन ...
समय से पहले ही बूढ़े हो जाते हैं हम
तेज़ दौड़ती इस सदी में ।
इसी तरह कभी-कभी सज़ा का हुक़्म सुनने से
आरोपी के बाल पक जाते हैं एक ही रात में ।

1845

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह

और लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
                    Аполло́н Григо́рьев
      Расстались мы – и встретимся ли сноваа

Расстались мы – и встретимся ли снова,
И где и как мы встретимся опять,
То знает бог, а я отвык уж знать,
Да и мечтать мне стало нездорово..

Знать и не знать – ужель не все равно?
Грядущее – неумолимо строго,
Как водится… Расстались мы давно,
И, зная то, я знаю слишком много…

Поверьте то, что знание беда, –
Сбывается. Стареем мы прескоро
В наш новый век. Так в ночь, от приговора,
Седеет осужденный иногда.

1845