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अलछिया / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना

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जब ओकरा जनम लेइते
मर गेलक माई
आऊर तनिके दिन बाद-
बापो मर गेल
त लछिया!
अलछिया हो गेल।
अनाथ अलछिया
चच्चा-चाची के रहमो-करम पर
जिअइत
बढ़ रहल हए दिने-दिन।
अब टोला-समाज के
ओक्कर बिआह के चिंता सतावे लागल हए
मुदा ई दहेज-लोभी समाज में
कोन थामत
ई अनाथ के हाथ?
अलछिया
भीतरे-भीतरे सुबकइअऽ
मुदा मुंह न खोलइअऽ
कि ई समाज के हाथ
कहियो अलछिया के
लाछिया बनावे खातिर उठत?
कि अलछिया सब्भे दिन
अलऽछे रह जाएत?
ओक्कर दिन
फेनू कहियो न बहुरत?