अलविदा बल्लीमाराँ / नबीना दास / रीनू तलवाड़
मैंने सुना है बौखलाए दिनों के बारे में जो घृणा करते हैं कविताओं के नामों से
उन्हें पसन्द था मुर्गे की बाँग से भी पहले सख़्त जबड़े वाली जीपों में सवारी
करना पुरानी दिल्ली की पीठ पर, रुकना किन्हीं ख़ास नम्बर वाले घरों के सामने
सम्भवतः, उन उमस-भरे दिनों ने गालियों को बदल कर पेट्रोल बम बना दिया
जला कर कोयला कर दिया चिकों को गर्मियों की मनमौजी बारिश द्वारा
उन छतों के नीचे कुछ काले खम्बे छोड़ जाने के बाद, जहाँ शेर रहा करते थे
सम्भवतः वह मेरी कल्पना थी कि मेरे क़दम तुम्हारे क़दमों से पहले पहुँचेंगे वहाँ
अब भी, प्रतीक्षा कर रहे होंगे, चारागाह में चरता घोड़ा चबाता होगा नरम काफ़िये
तुम्हारी बची-खुची नीम-ग़ज़लें, उनके अलँकृत मक़्ते, क्योंकि यह प्रेम था
ग़लिब यहीं रहते थे न ? पेडल चलाते-चलाते मेरा रिक्शावाला मुस्कुराया :
हर शाम यहाँ से ख़रीदते थे अपना पउवा, वहाँ से चलकर जाते थे !
आश्चर्य नहीं कि इस जँगले पर मैंने कल्पना की हवा से छितरे तुम्हारी दाढ़ी के बालों की
अगर तुम अभी भी साँस लेते हो उस कोयला हुए बरामदे के पीछे मैं नहीं जान पाऊँगी
पकड़े इन टूटी चूड़ियों के टुकड़ों को, जो टुकड़े हैं एक गुज़र-चुके प्रेम के, अन्तराल के पश्चात —
अलविदा, कहा होगा तुमने उदास हो कर, फिर अँग्रेज़ी में कहा होगा — "सो लॉन्ग"।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : रीनू तलवाड़