Last modified on 28 अक्टूबर 2010, at 20:35

अलस-उनींदा बैठा था बूढ़ा / इवान बूनिन

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: इवान बूनिन  » संग्रह: चमकदार आसमानी आभा
»  अलस-उनींदा बैठा था बूढ़ा

अलस-उनींदा
बैठा था बूढ़ा
खिड़की के पास आरामकुर्सी पर

मेज़ पर रखा था प्याला
ठंडी हो चुकी चाय का
उसकी उँगलियों में फँसा था सिगार
जिससे उठ रहा था सुगंधित नीला धुँआ

सर्दियों का दिन था वह
चेहरा उसका लग रहा था धुँधला
सुगन्ध भरे उस हलके धुएँ के पार
अनन्त युवा सूर्य झाँक रहा था
सुनहरी धूप ढल रही थी पश्चिम की ओर

कोने में पड़ी घड़ी टिक-टिक कर रही थी
नाप रही थी समय
बूढ़ा असहाय-सा देख रहा था सूर्यास्त
सिगार में सलेटी राख बढ़ती जा रही थी
मीठी ख़ुशबू का धुँआ
उड़ रहा था उसके आसपास

(23 जुलाई 1905)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय