भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अलाव / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
होते जा रहे निस्पन्द
इस हेमन्ती अन्धकार में
जब
अलाव हैं तुम्हारी यादें—
देतीं आलोकित ऊष्मा
शब्दों को मेरे
मुझ को
राख करती हुईं ।
—
7 जनवरी 2010