भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अलि-विलासि-संलाप / नलिन विलोचन शर्मा
Kavita Kosh से
कलिका में संदेहित पुष्प
ढूंढा। नहीं पाने पर
उसका प्राण-रस
पी लिया।
- --(अलि)
xxx
मैंने कल्पित सुगंध
सूंघ कर उसे
बटन-छिद्रित किया।
अब परिमृदित पड़ी है।
- --(विलासी)
xxx
कैसी अलौकिक यंत्रणा
पाई, तुम दोनों से,
मूर्खों, मुझ पर दया दिखाते!
- --(कलिका)