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अल्फ़ांजों / सरोज कुमार

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बन्ने मियाँ के यहाँ
रत्नागिरी का
हापुस आम अल्फ़ांजो
इस बार गजब का आया!

पर महँगा काफी था,
खाने की ललक भी कम नहीं!
मित्र के साथ पहुँचा
भाव पूछा, बहस की
सौदा नहीं पटा!
बन्ने मियाँ ने कहा-
बाबूजी ,
जीतने की खरीद है
उससे कम में आप चाहें,
सरासर ना-इंसाफ़ी है
मुझ पर ब भरोसा कीजिए!
बुझा-बुझा लौट पड़ा
मित्र को समझाते हुए
कि इन लोगों को
राष्ट्रीय धारा से जोड़े बिना
अपने अल्फ़ांजो नहीं खा पाएँगे!