भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अवकाश की कमी / बेढब बनारसी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


संध्या को मैं रह न सकूँगी .
एक मित्र ने बुलवाया है
कुछ विरोध में कह न सकूँगी .

विद्यापति का फ़िल्म आया है,
हम दोनों को वह भाया है .
दुःख होगा यदि साथ न जाऊँ,
जिस दुःख को मैं सह न सकूँगी .

मैं तो हूँगी शीघ्र रवाना,
आज बना लेना तुम खाना .
आज रसोई की धारा में,
प्रियतम, मैं तो बह न सकूँगी .

शरबत भला बनाऊँ कैसे,
मोल मँगा लो देकर पैसे
अभी-अभी क्यूटेक्स लगाया है
मैं दधिको मह न सकूँगी