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अवधारणा / राजेन्द्र देथा
Kavita Kosh से
सुनो! हम दोनों बस चुके है
इन दिनों अलग अलग शहर में
सावचेत रहना इन शहरों से
यहां प्रेम से जियादा प्रेम की
अवधारणाओं का बोलबाला है
मत ढूंढना अपने प्रेम और स्वयं को
इन मनगढत थ्योरियों में।
वक्त से दोस्ती सतत् रही तो
फिर मिलेंगे ठीक उन चांदनी रातों में
घर पीछे वाले धोरे पर
जहां कच्ची उम्र में मेणमोट खेला करते
और फिर गुम हो जाएंगे
स्नेहिल स्मृतियों में,
अशेष ख़ाबों में
तब शायद
ऐसा देख समीप स्थित फोग भी
करेगा अपनी बिरादरी से इन
मरुद्भिदों के प्रेम के बखान!
कच्ची उम्र की कच्ची कविताएँ!