अवधी गजल / वंशीधर शुक्ल
तनी कोई घई निहारउ तौ, मुदी बाठइँ तनिकु उनारउ तौ।
कवनु समझी नहीं तुम्हइँ अपना, तनी तिरछी निगाह मारउ तौ।
करेजु बिनु मथे मठा होई, तनी अपने कने पुकारउ तौ।
कौनु तुमरी भला न बात सुनी, बात मुँह ते कुछू निकारउ तौ।
सगा तुमका भला न को समुझी, तनि सगाई कोहू ते ज्वारउ तौ।
हुकुम तुम्हार को नहीं मानी, सिर्रु मूड़े का तनि उतारउ तौ।
तुमरी बखरी क को नहीं आई, फूटे मुँह ते तनी गोहारउ तौ।
इसारे पर न कहउ को जूझी, तनि इसारे से जोरु मारउ तौ।
बिना मारे हजारु मरि जइहैं, तनि काजर की रेख धारउ तौ।
जइसी चलिहउ हजार चलि परिहैं, तनी अठिलाइ कदमु धारउ तौ।
हम तुम्हइँ राम ते बड़ा मनिबा, तनि हमइँ चित्त मा बिठारउ तौ।
गिरा-अरथ: घई – ओर
बाठइँ – ओंठ
उनारउ – खोलकर
कने – समीप
ज्वारउ – जोड़ना
सिर्रु – पागलपन
गोहारउ – आवाज लगाना