मुहल्ले में सुत्ता है, बन्द दरवाज़े
रात के हाथों, सुनो, साँकल बाजे
"अवनि, घर में हो क्या?"
बारह महीने यहाँ होती बरसात
गायों-से विचरते हैं मेघ हर ओर
पलटकर हरी घास बढ़ाती हाथ
छूने को मेरे दरवाज़े की कोर --
"अवनि, घर में हो क्या?"
अधडूबे दिल में कुछ दूर से आती
व्यथा के बीच जब नींद आ जाती
एकदम सुनता हूँ रात की दस्तक -
"अवनि, घर में हो क्या?"
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित