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अवशिष्ट / धर्मवीर भारती
Kavita Kosh से
दुख आया
घुट घुटकर
मन-मन मैं खीज गया
सुख आया
लुट लुटकर
कन कन मैं छीज गया
क्या केवल
इतनी पूँजी के बल
मैंने जीवन को ललकारा था
वह मैं नहीं था, शायद वह
कोई और था
उसने तो प्यार किया, रीत गया, टूट गया
पीछे मैं छूट गया