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अवशेष / अशोक कुमार
Kavita Kosh से
आज सुबह मैंने अश्वमेध के घोडों को देखा
और लगा घोड़े सबल हो गये हैं
पूरी दुनिया जीतते-जीतते
आज सुबह मैंने खुद को महसूस किया
और लगा मैं घोड़ा बन गया हूँ
दौड़ते दौड़ते
आज सुबह मैंने पशुओं को देखा
और लगा मवेशी दुर्बल हो गये हैं
खेत जोतते-जोतते
आज सुबह मैंने सच के घोडों को कहाँ देखा था
सच के घोड़े कहीं निर्बल ही हो गये होंगे
घोड़े अब सिर्फ़ अवशेष भर थे।