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अविचल रूप लिए / अनुराधा पाण्डेय
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अविचल रूप लिए, सुंदर स्वरूप लिए, भव्यता को है प्रणाम, धन्य श्रम साधिका।
स्वेद से सने हैं भाल, धूप से प्रवाल गाल, यौवन लगे उद्दाम, धन्य श्रम साधिका।
आर्त्त ताप का न भान, तीरथ है श्रमदान, कर्म में निरत चाम धन्य श्रम साधिका।
धूल से सने है पाँव, दूर उससे है छाँव, लगती प्रपद्य धाम, धन्य श्रम साधिका।