भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अव्यक्त प्रणय / रामकृष्ण झा ‘किसुन’
Kavita Kosh से
अहाँ छी
आ
हम छी।
ई ‘आ’ जँ हटा दी तँ
केवल
अहाँ-हम
छी !
शेष भीड़
सौंसे नगर
बोटेनिकल गार्डेन थिक।
अहाँ-हमक बीचमे
छोटका सन ‘हाइफन’ अछि
मने एकटा निःशब्द
अनस्तित्व
छोट-छीन चुप्पी
तैं भरिसक अहूँ चुप छी
आ’ हमहूँ चुप छी,
मने बाजब तँ बीचमे
एकटा व्यवधान भ’ जाएत
शब्दक
वा स्वर मात्रक
अतिरिक्त अस्तित्व
तैं सरिपहुँ आइ धरि
अहाँकें नइं टोकलहुँ हम
हाइफनक हटि जएबाक
आकुल प्रतीक्षा अछि।