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अश्क आँखों में भर गए होंगे / जंगवीर सिंंह 'राकेश'
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अश्क आँखों में भर गए होंगे
या'नी सब ख़्वाब मर गए होंगे
बारहा तेरे चाहने वाले,
वक़्त पे सब मुकर गए होंगे
वज़्ह थी, जो दरख़्त सूखा है
यूँ ही पत्ते न झर गए होंगे
आज फिर शाम ढल गयी होगी
आज फिर लोग घर गए होंगे
कल क़यामत की बाहों में आकर
क्या ? वो सब लोग मर गए होंगे
ऐ! कज़ा नींद बन के आयी है
तुझसे तो ख़्वाब डर गए होंगे
देख के जिनको काँप जाता हूँ
मौत से पहले मर गए होंगे
आसमाँ टूट के बिखर गया है
तारे भी टूट के बिखर गए होंगे
और किस बात पर मरा है 'वीर'
उस के जज़्बात मर गए होंगे ।