Last modified on 23 फ़रवरी 2013, at 21:41

अश्क बहने दे यूँ ही / गणेश बिहारी 'तर्ज़'

अश्क बहने दे यूँ ही
लज्ज़ते ग़म कम न कर

अजनबियत भी बरत
फासला भी कम न कर

पी के कुछ राहत मिले
ज़हर को मरहम न कर