भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अश्क बहने दे यूँ ही / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
Kavita Kosh से
अश्क बहने दे यूँ ही
लज्ज़ते ग़म कम न कर
अजनबियत भी बरत
फासला भी कम न कर
पी के कुछ राहत मिले
ज़हर को मरहम न कर