अश्रु के पट पर कहानी मौन मेरी।
दर्द की हद से कि वाणी मौन मेरी।
आह में तो जल चुकी मेरी हँसी है।
और जीभर रो न पाता, बेबसी है।
विरह की निर्मम चिताओं पर निरन्तर
सुलग कर भी है जवानी मौन मेरी।
नयन मिलने को व्यथित, स्वप्निल सजल है।
चरण बढ़ने को थकित पल-पल विकल है।
किन्तु, चारों ओर तम है, विजनवन है,
और मंजिल की निशानी मौन मेरी।
(5.6.1948)