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अश्रु तुम्हारे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1
अश्रु तुम्हारे
मेरे हृदय से बहे
तू दर्द सहे।
2
सदा विवाद
किससे करें भला
प्राण संवाद।
3
कहाँ छुपालूँ
मेरे प्राण तुमको
दुख न छुए।
4
सुख न दिया
शाप- सा संग रहा
दर्द ही दिया।
 5
गला हिमाद्रि
तेरी पीर पीकर
बहा हिमाद्रि।
6
पावन कर्म
यज्ञमय जीवन
असुर बाधा।
7
अंधे हैं लोग
पावन प्रेम को भी
समझें रोग।
8
विकृत बुद्धि
तीर्थ व्रत करें भी
होती न शुद्धि।
9
मोक्ष न माँगूँ
अहोरात्र मैं माँगूँ
 सिर्फ़ तुम्हीं को।
10
मरुभूमि मैं
घन बन बरसो
मन सरसे।
11
प्यास हमारी-
अधर -व्यथा तेरी
पीकर जी लूँ।
12
पट्टिका लिखी
सुख की परिभाषा-
तुम्हारा सुख।
13
उष्ण चुम्बन
बूँद- बूँद दुःख पी
तृप्त हो मन।
14
हाथ तुम्हारे
लिख दूँ सर्व सुख
वश जो चले।
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