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अषाढ़ / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
कोजी दाझी
सूरज
धरती री
काया नै
देख’र
मायड़ री
दुरगत
पड़्यो मेह
खा’र तड़ाछ,
अंधेंरीजग्या
हैंकड़ डूंगर,
नाखै
पानड़ां रै
नैणां स्यूं गाछ
आणद रा आंसू !