अष्टमूर्ति / अंकावली / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
अपर अधर धरि व्यापित रूप अनूप जनिक प्रत्यक्ष
क्षिति जल अनल अनिल नभ शशि रवि यजन योजना दक्ष
गन्ध, स्वाद, पुनि रूप, परस, ध्वनि, शीत, ताप अनुभूति
कष्ट मेटि शिव अष्टमूर्ति जग जगबथु नित सम्भूति
1. शर्वाय क्षितिमूर्तये नमः -
जड जंगम जत रूप गंध रस सम्भृत संचित
फलक पटल जत विषयमात्र होइछ रुचि चित्रित
गिरि सागर मरु-मालव वन-पुर ऊसर-उर्वर
पीत रक्त सित असित प्रजा पुनि मिश्र रक्तधर
पृथुल रूप पृथ्वी प्रकृति जनिक विकृतिसँ परिणता
‘सर्व’ सर्वाहित करथु से शस्य प्रशस्यक प्रचुरता
2. भवाय जलमूर्तये नमः -
रसा रसवती, हरित भरित वन रस रसाल फल
गगन शून्य घन सघन वरस, रस विद्युत द्युति भल
गिरि-निर्झर झर, सिन्धु बिन्दु बल सरित स्रवन्ती
कन-कन अन्न प्रपन्न विदित रसना रसवन्ती
भव-उद्भव जत विभव अछि जलमय रूपहिँ संभृता
‘भव’ से भव हित जलद बनि बरसथु नित रस सम्पदा
3. रुद्राय अग्निमूर्तये नमः -
शीत-भीत जगती कंपित पबइछ जत गर्मी
द्रव परिणत भय द्रव्य बनय दृढ़ सुखि दु्रति गर्मी
रस परिपाक - विपाक ओजमय स्फूति पूर्ति कय
करइछ उष्ण सतृष्ण जगत जड ज्वलन मूर्तिमय
‘रुद्र’ त्रिलोचन अग्निमय मद मदनक उद्धत विनत
क्षुद्र विषय-तृण जाल जत ज्ञान-ज्वाल जरवथु सतत
4. उग्राय वायुमूर्तये नमः -
जल जरि जे जल बनल भाफ पुनि जलद योजना
श्वास - श्वास मे विश्वासक सत्प्राण प्रेरणा
गति तिर्यक् शोषणो रुक्षता अवगुण टेकल
अनिल-सलिल पुनि गगन-अवनि बिच अंतर मेटल
स्थिति नहि पहुँचत प्राप्ति धरि जा रहि गति संचारणा
‘उग्र’ मूर्ति शिव वायुमय बहथु, करथु जग चालना
5. भीमाय आकाशमूर्तये नमः -
नहि विकास अथवा प्रकाश यदि अवकाश न हो
ध्वनित न शब्दक शक्ति शून्यता आकाश न हो
अनिल उर्द्ध्व-गति कतय? अधोगति सलिल न संभव
तिर्यक् गमन पवनहुक, क्षिति अवनिहु नहि अनुभव
जड-जंगम क्षिति थिति सकल आदि-अन्त जत कल्पिता
व्योमकेश ‘भीम’क दया ध्वनि शून्यहु हो व्यंजिता
6. पशुपतये यजमानमूर्तये नमः -
पंचतत्त्वहु क योग कतय, योजक नहि प्रानी
रूप गंध रस परस शब्दहुक अनुभव दानी
पंचभूत नहि वर्तमान, यजमान भविष्य न
हवि भाजी नहि ज्वलित-ज्योति तँ हुतो हविष्य न
पूजन संगति दान जत यजन कर्म पटुता भरथु
‘पशुपति’ यज्ञ स्वरूप शिव यजमानक पशुता हरथु
7. महादेवाय सोममूर्तये नमः -
रम्य कान्ति रस तृप्ति शीत शुचि रुचि गुन एकत
सौम्य भावना भरित रमनि मन रति अति अभिमत
अनल भाल केर, गर क गरल कटुता ज्वाला जत
हरथि, भरथि मुद कुमुद शिशु शशिहु शिवक सीसगत
सरस कला माला कलित प्रतिभा प्रभा पसारि नित
अन्नोषधिमय सौम्यमय ‘महादेव’ बाँटथु अमृत
8. ईशानाय सूर्यमूर्तये नमः -
स्वर्ण किरण कण बिकिरण करइत तिमिर हरण हित
जीवन जयोति जगाय भगाय, जगत जडता नित
काल-कला पुनि दिशा - भाग सभ कथुक नियता
सृष्टि-यंत्र संचालन हित सुविदित अभियता
ईशानक दृग सूर्य जय! अगजग जगमय जनिक बल
हरथु तिमिर मल कलुष-त्रय, भरथु प्रकाश विकास भल