भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
असंभव / केशव
Kavita Kosh से
मैं
तुम्हारे पास से
उठ आया ऐसे
जैसे पेड़ से
पंछी
पहाड़ से
धूप
जाकर भी
तुम्हारे पासे से जा सकता हूँ
कैसे।