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असत्य / सत्य / महेंद्रसिंह जाडेजा

असत्य
पहाड़ जितना भी
बर्फ़ की तरह
पिघल जाता है ।

सत्य
कणी जितना भी
हीरे की तरह
शाश्वत है ।

मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : क्रान्ति