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असथिरऽ सें सोचऽ / खुशीलाल मंजर

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हे हो मालिक निक्कऽ नै होतौं
हमरा सतैभा तेॅ भलऽ नै होतौं
हम्मैं छी दुखिया दुक्खऽ सें जीयै छी
आपनऽ भागऽ पर रोजे कानै छी
हमरा देखै छऽ देखी केॅ हाँसै छऽ
फाटलऽ अँचरा में तोहें की खोजै छऽ
हेनां केॅ जौं ताकभा तेॅ अच्छा नै होतौं
हे हो मालिक निक्को नै होतौं

है नै समझऽ कि पेटऽ में नै छै रोटी
तोहरो घरऽ में छौं बहूं आरो बेटी
एक रं देखभा तेॅ सभ्भे सुरैहतौं
दू रं करभा तेॅ पछताय लेॅ लागतौं
जेनां धधैभा होनै मिहैतौं
हे हो मालिक निक्कऽ नै होतौं

की है देहऽ पर करै छऽ गुमान
एक दिन तेॅ जायलेॅ लागतौं समसान
खाली ऐलऽ छऽ खालिये जैभा
मरला केॅ मारी केॅ की की लेभा
जेकरा समझै छऽ बेटा वैं आगिन देतौं
हे हो मालिक निक्कऽ नै होतौ

असथिरऽ सें सोची ला करऽ नै अन्हेर
सभ्भे केॅ लागलऽ छै यै दुनियाँ में फेर
तहूँ नै बचभा मारभौं भीतर मार
बिना औरदा रऽ होय जैभा पार
तखनी तोरऽ करनी पर सभ्भे थूकतौं
हे हो मालिक निक्कऽ नै होतौं