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असद बदायूँनी की मौत पर / शहरयार
Kavita Kosh से
ख़्वाहिशे-मर्ग की सरशारी में
यह भी नहीं सोचा
जीना भी एक कारे-जुनूं है इस दुनिया के बीच
और लम्बे अनजान सफ़र पर चले गए तन्हा
पीछे क्या कुछ छूट गया है
मुड़के नहीं देखा।